छोटे शहरों के छात्रों के लिए अंग्रेज़ी भाषा का बढ़ता महत्व
नजीबाबाद, बिजनौर जनपद का एक छोटा लेकिन उभरता हुआ कस्बा, जहां शिक्षा के प्रति जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। परंतु जब बात आती है अंग्रेज़ी भाषा की, तो यहां के अधिकतर छात्र अभी भी पीछे रह जाते हैं। आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान न केवल शैक्षिक विकास के लिए, बल्कि करियर और सामाजिक पहचान के लिए भी अनिवार्य हो गया है।
अंग्रेज़ी: एक आधुनिक ज़रूरत
नजीबाबाद के सुभाष इंटर कॉलेज में 12वीं कक्षा की छात्रा रचना ने बताया, “मैं मेडिकल की तैयारी कर रही हूँ, लेकिन अंग्रेज़ी में कमजोर होने के कारण कई बार समझने में दिक्कत होती है।” यह केवल रचना की बात नहीं है, यहां सैकड़ों छात्र हैं जो अंग्रेज़ी को ‘डर’ की तरह देखते हैं।
अंग्रेज़ी आज सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि सूचना, तकनीक, और वैश्विक संवाद का माध्यम बन चुकी है। इंटरनेट, मोबाइल ऐप्स, प्रतियोगी परीक्षाएं, नौकरी के इंटरव्यू – इन सभी क्षेत्रों में अंग्रेज़ी की पकड़ मजबूत है।
छोटे शहरों के छात्रों के लिए बड़ी चुनौती
नजीबाबाद जैसे कस्बों में संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित अंग्रेज़ी शिक्षकों का अभाव, और पारिवारिक पृष्ठभूमि की सीमाएं छात्रों को इस भाषा में दक्ष बनने से रोकती हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे माहौल बदल रहा है।
स्थानीय एनजीओ ‘नवचेतना’ के संस्थापक मोहम्मद फैयाज़ बताते हैं, “हम बच्चों को फ्री में बेसिक अंग्रेज़ी बोलचाल सिखाते हैं। कई बार बच्चे शुरुआत में झिझकते हैं, लेकिन जब वे अपने मोबाइल या कंप्यूटर पर अंग्रेज़ी में कुछ समझने लगते हैं तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।”
सरकारी और निजी प्रयासों की ज़रूरत
सरकारी स्कूलों में अंग्रेज़ी शिक्षण को मजबूत करना, स्मार्ट क्लास और डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देना और अभिभावकों को इसके महत्व के बारे में जागरूक करना बहुत ज़रूरी है। साथ ही निजी संस्थान और कोचिंग सेंटर भी छात्रों को अंग्रेज़ी में सशक्त बनाने की दिशा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
अंग्रेज़ी बोले न बोले, समझना ज़रूरी है
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अंग्रेज़ी बोलना ज़रूरी नहीं, लेकिन उसे समझना और लिखना आना आज के दौर की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है। यही कारण है कि छोटे शहरों के छात्र अगर समय रहते इस भाषा में पकड़ बनाएं, तो वे भी बड़े सपनों को साकार कर सकते हैं।
नजीबाबाद की बदलती सोच
अब नजीबाबाद जैसे शहरों में भी माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में भेजने लगे हैं। कोचिंग संस्थानों में अंग्रेज़ी स्पीकिंग कोर्स की मांग बढ़ रही है। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि छोटे शहरों के छात्र भी अब वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
निष्कर्ष
अंग्रेज़ी अब केवल ‘विदेशी भाषा’ नहीं रही, यह एक ज़रूरी ‘जीवन कौशल’ बन चुकी है। नजीबाबाद के छात्र अगर सही दिशा में प्रयास करें और समाज उन्हें अवसर दे, तो वे भी उस मंच पर पहुंच सकते हैं जहां केवल बड़े शहरों के छात्रों का वर्चस्व रहा है।
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